बोलचाल की भाषा में पीड़िया के नाम से प्रचलित रुद्रव्रत को ज्यादातर लड़कियां ही करती हैं। वे इस व्रत के माध्यम से अपने भाईयों की खुशहाली, लंबी उम्र, सुख समृद्धि की कामना करती हैं। व्रत के संबंध में बताते हैं कि इसमें रात भर जागकर पीड़ियों के गीतों के माध्यम से ही पूजा का विधान है।
इसकी शुरुआत गोवर्धन पूजा के दिन से ही हो जाती है। गोवर्धन पूजा के गोबर से ही घर के दीवारों पर छोटे छोटे पड़ों के आकार में लोक गीतों के माध्यम से पीड़िया लगायी जाती है। इस दौरान लड़कियां घर की बुजुर्ग महिलाओं से अन्नकूट से कार्तिक चतुर्दशी तक छोटी कहानी व कार्तिक पूर्णिमा से अगहन अमावस्या तक सुबह स्नान कर बड़ी कहानी सुनती है। व्रत के दिन छोटी बड़ी दोनों कथाएं सुनती हैं। इस व्रत में नए चावल व गुड़ का रसियाव (गुड़ चावल का बिना दूध का खीर) बनाया जाता है जिसे व्रती दिन भर उपवास रहने के बाद शाम को सोरहिया के साथ ग्रहण करती हैं।
खास बात ये है कि धान की संख्या भाईयों की संख्या के अनुसार होती है। यानि व्रत रखने वाली लड़की के जितने भाई होते हैं उसी संख्या के हिसाब से प्रति भाई 16 धान से चावल निकलाकर वो सोरहिया निगलती है। व्रत के बाद इस पड़ को सुबह तालाब या नदी, पोखरों में पीड़िया के पारंपरिक गीतों के साथ बड़े ही उत्साह से विसर्जित करती हैं। साथ ही कन्यायें आपस में चिउड़ा और मिठाई एक दूसरे से आदान-प्रदान करती हैं फिर पारण कर व्रत तोड़ती हैं।