सती किसे कहते है।
सती एक ऐसी स्त्री है जो इतनी पवित्र है कि उसे कभी भी अपने पति के अलावा अन्य पुरुषों के बारे में कोई विचार नहीं होता है। वह मन, वचन और काया से किसी अन्य पुरुष की ओर आकर्षित नहीं होती है। सती वही है जो अपने पति के लिए अपनी जिंदगी का सब कुछ न्यौछावर कर दे यहाँ तक की भगवान से भी अपनी पति की लम्बी आयु क लिए लड़ जाए और अपने प्राणो की चिंता किये बिना हॅसते हॅसते अपने पति के साथ उसके चीता पर लेट जाए और अपने प्राण त्याग दे। इस कलयुग में भी ऐसी ही एक सती हुई थी जो अपने पति के साथ उनके चीता पर लेट के सती हो गई। जिनका नाम है हुलासो सती।
क्यों और कैसे बनी हुलासो सती
बहुत समय पहले की बात है। बलिया जिला के बांदी पुर गांव में एक हुलासो नाम की एक लड़की हुआ करती थी। वह बड़ी ही रूपवती और सुशील थी उसका व्यवहार बड़ा ही अच्छा था। धीरे – धीरे हुलासो बड़ी होने लगी तो उसके पिता जी को उसके विवाह की चिंता सताने लगी और वो लड़का ढूढ़ने के लिए आस पास के गांव में जाने लगे। नजदीक के ही एक गांव “हल्दी ” में एक युवक मिला जो हुलासो का पति बनने लायक था। हुलासो की शादी बड़े धूम धाम से हुई। शादी के सभी रीती रिवाज़ बड़े ही अच्छी तरह से सम्पन हुए और बारात की विदाई अच्छे तरह से कर दी गई लेकिन हुलासो बारात के साथ नहीं गई वो गवना के रस्म के लिए अपने पीहर में ही रूक गई। लेकिन छः महीने बाद ही हुलासो पर दुःखो का पहाड़ टूट पड़ा जब हुलासो को पता लगा की उसके पति अब इस दुनिया में नहीं रहे। हुलासो ने जैसे ही यह खबर सुनी वो अपनी सुध -बुध खो गई और नंगे पैर ही अपने पति के पास पहुंचने क लिए भागती गई उनको ना कांटा चुभने का दर्द था ना ही कंकड़ का वो भागती भागती अपने ससुराल पहुंची। जहाँ गंगा किनारे उनका अंतिम संस्कार हो रहा था। हुलासो ने कहा मुझे भी अपने पति के साथ सती होना है। गांव के सब लोग हुलासो को समझाए अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है तुम सती ना हो। हुलासो नहीं मानी उन्होंने कहा पति के बिना मेरी जिंदगी का कोई महत्व नहीं है मुझे अपने पति के साथ ही सती होना है। लेकिन हुलासो के सती होने में भी एक बाधा थी, जितने ब्राह्मण आये थे उन्होंने कहा तुम सती नहीं हो सकती क्योंकि तुम्हारा गवाना का रस्म नहीं हुआ है। हुलासो ने पंडित जी से कहा बाबा पांच मिनट का समय है आप उतने देर में गवना का रस्म करा दीजिए ताकि मैं सती हो सकूँ । हुलासो ने अपने पति को अपने गोद में लिया और आँख बंद कर के यमराज से अपने सत के प्रभाव से अपने पति के प्राण मांग लिए और गवना का रस्म किया जिससे वो सती हो सके।
गवाना का रस्म पूरा होते ही हुलासो के अंगूठे से आग निकली और चिता में लग गई जिससे हुलासो सती हो गई। बेटे और बहु को सती होता देख हुलासो के सास -ससुर भी अपना प्राण त्याग देने का विचार किया और अपना सांस रोक कर अपना प्राण त्याग दिए ।
इस प्रकार हुलासो और उसके पूरा परिवार अपना प्राण त्याग दिए।
हुलासो सती का मंदिर
हुलासो सती का मंदिर उसी जगह पर बना है जहाँ पर वो सती हुई थी। हुलासो गंगा किनारे सती हुई थी लेकिन वर्त्तमान में अब वहाँ पर पेड़ पौधे लगाए गए है जिससे वो जगह एक बहुत बड़े बगीचे के रूप में तब्दील हो गया है। हुलासो सती का स्थान जहाँ पर वो सती हुई है वो स्थान मिट्टी का है मान्यता है की उस स्थान को कोई भी छूता है या बनाने की कोशिश करता है तो उसकी मृत्यु हो जाती है। हुलासो एक सती थी इसलिए वो अपना स्थान किसी को छूने नहीं देती है। वही पास में ही १०-१५ मीटर की दुरी पर ही हुलासो के सास-ससुर की भी समाधी है।
हुलासो सती का मंदिर अच्छा बना हुआ है। मंदिर के पास एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ है मंदिर परिसर में नल की भी व्यवस्था है और मंदिर में बैठने की भी व्यवस्था बनाई गई है। मंदिर के पास ही प्रसाद की भी व्यवस्था है जिससे भक्तो को कोई परेशानी का सामना न करना पड़े। मंदिर साधारण और अच्छा है मंदिर में जाने क बाद बहुत ही शांति का अनुभव होता है।
हुलासो सती की महत्ता
आज भी हुलासो सती से कोई मन्नत मांगी जाती है तो हुलासो सती उसकी मनोकामना जरूर पूरा करती है । सोमवार और शुक्रवार को वह भक्तो की भीड़ लगी होती है। अपनी मनोकामना पूरी होने पर भक्तजन आते है और हुलासो माता को को प्रसाद चढ़ाते है और उनका गुणगान करते है।