यह कहानी एक राजा की है, जिसकी तीन रानियाँ थीं। पहली दो रानियों के कोई संतान नहीं थी, जबकि तीसरी रानी के आते ही वह गर्भवती हो गईं। यह देखकर पहली दो रानियाँ जलने लगीं। जब तीसरी रानी के गर्भ का नौवां महीना आया, तो राजा ने कहा, “रानी, मैं शिकार पर जा रहा हूँ। तुम्हें कोई तकलीफ हो तो यह घंटी बजाना, मैं आवाज सुनते ही आ जाऊंगा।” यह कहकर राजा चले गए।
राजा के जाने के बाद, रानी ने सोचा कि यह देखने के लिए कि राजा वास्तव में आएंगे या नहीं, उन्होंने घंटी बजाई। राजा जल्दी से वापस आए और रानी को सुरक्षित देखकर गुस्सा हो गए और फिर से शिकार पर चले गए। उन्होंने जाते समय कहा कि अब चाहे तुम कितनी भी घंटी बजाओ, मैं नहीं आऊंगा।
कुछ दिनों बाद, रानी को प्रसव पीड़ा हुई। उन्होंने फिर से घंटी बजाई, लेकिन राजा नहीं आए। पहली दो रानियाँ, जो रानी से ईर्ष्या करती थीं, ने रानी से कहा कि वह चूल्हे में मुँह डालकर शांत रहे। तीसरी रानी ने वैसा ही किया, और थोड़ी देर बाद उन्होंने जुड़वां बच्चों (एक बेटा और एक बेटी) को जन्म दिया। लेकिन दो बड़ी रानियों ने इन बच्चों को उठाकर कोंहारे का मटिसार में रख दिया और रानी के सामने ईंट और पत्थर रख दिए।
जब राजा लौटे, तो बड़ी रानियों ने झूठी कहानी सुनाई और कहा कि रानी ने ईंट और पत्थर को जन्म दिया है। राजा ने गुस्से में आकर तीसरी रानी को महल से निकाल दिया और उसे कौवाहँकनी बना दिया।
कुछ समय बाद, कोहइनियाँ मिट्टी लेने गई, तो उसने देखा कि मिट्टी में फूल की तरह सुंदर बच्चे पड़े हैं। उसने उन्हें उठाकर अपने घर ले गई और उनकी परवरिश की।
एक दिन, जब बच्चे मिट्टी के घोड़े और लगाम से खेल रहे थे, तो राजा ने उनकी बात सुनी और उनसे सवाल किया। बच्चों की बातों से राजा को सच्चाई का पता चला। उन्होंने कोहइनियाँ से बच्चों की असली माँ का पता लगाया, और फिर सच जानने के बाद, उन्होंने तीसरी रानी को वापस महल में लाकर उसे रानी बना दिया, जबकि पहली दो रानियों को सजा दी गई।
कहानी का अंत सुखद होता है, जब तीसरी रानी का समय अच्छा हुआ, तो सबका समय अच्छा हो गया।