एक पडित जी थे , नाम उनका था भोला। पढ़े लिखे कुछ ख़ास न थे , परन्तु पुरे क्षेत्र में उनकी पंडिताई का खूब रोब था।

पुरे गांव की जजमानिका वह ही सम्हालते थे। दूसरे गांव का भूले भटके अगर कोई पंडित आ भी जाए तो उसकी बेइज्जती करके भगा देते थे। उनका साफ़ साफ़ कहना था, अगर कोई बहार का पंडित गांव में आता है तो मेरे साथ शास्त्रार्थ करें , उसके बाद पंडिताई का नाम ले। शास्त्रार्थ में वे ऐसी फ़ज़ीहत करते कि बाहरी पंडित लजा के भाग जाता था। इस तरह वो पुरे गांव कि पंडिताई संभाले हुए थे, और खूब धन और यश कमा रहे थे।

रात में के बार एक दूर गांव के पंडित जी भूले भटके उस गांव में आ गए। वो तो रात भर गांव में शरण लेना चाहते थे। बाकी गांव के लोग उनको भोला पंडित के पास ले गए। भोला पंडित ने शास्त्रार्थ करने के इरादे से सवाल किया “खा खा खइया”? बेचारे उन बाहरी पंडित जी को कुछ समझ नहीं आया और बगले झाँकने लगे। भोला पंडित जी ने उनका पोथी पत्रा छीन कर आधी रात को गांव के बहार भगा दिया।

जब थके मांदे पंडित भोर में अपने गाओं पहुंचे तो उनका यह हाल देख कर उनका छोटा भाई आग बबूला हो गया और भोला पंडित से बदला लेने की ठान ली। बड़े भाई के लाख रोकने फिर भी वो नहीं माना और भोला पंडित के गांव की ओर चल पड़ा।

गांव में घुसते ही लोग उनको भोला पंडित के घर ले गए। भोला पंडित ने अपनी आदत के अनुसार उससे सवाल किया – खा खा खइया ?

सवाल सुनते ही वो पंडित आग बबूला हो गया और भोला पंडित से बोला “अरे मुर्ख पंडित, अन्धो में काना राजा बना हुआ है ? कम से कम सिलसिलेवार सवाल पूछो। खा खा खइया के पहले क्या होता है, पता है तुम्हे ? नहीं पता तो सुनो —

पहिले होला जोत जोतइया
तब फेरु होला हेंग हेंगईया
तब फेरु जाके बोव बोवइया
होला जब तब कूट कुटइया
कुटी पिसीके रिन्ह रिनहैया
तब न जाके के खा खा खइया !!

इतना सुनते ही गांव के लोग चकित रह गए। ये पंडित तो बड़े जानकार मालूम पड़ते है। इनके आगे तो गांव के भोला पंडित तो कुछ नहीं है। क्यों ना आज से हम इनके ही जजमान बन जाए ?

मौके की नज़ाकत को देख के पंडित बोले “हे ग्रामवासियों ! आप के गांव के पंडित जी के मूंछ का महातम में जानता हूँ। जिसको भी पंडित जी के मूंछ का बाल मिल जाएगा , उसको एक बेटा होगा अगर दो मिल जाए तो दो होगा। अब आप सब लोग अपनी जरुरत के हिसाब से पंडित जी का बाल नोच लें।”

फिर क्या था, गांव के सभी युवक पंडित जी के मूंछ का बाल नोंचने के लिए टूट पड़े और देखते देखते उनके मूंछ के सारे बाल उखड गए। पंडित जी रोते चिल्लाते रह गए, परन्तु उनका सुने कौन। कोदू की कोई संतान नहीं थी तो उसकी पत्नी ने भी उसको पंडित जी के पास भेजा। परन्तु तब तक पंडित जी के मूंछ के सारे बाल उखड़ गए थे। फिर कोदू ने बिना कुछ और समझे भुझे पंडित जी की चुटिया ही उखाड़ ली।

चुटिया के उखड़ते ही पंडित जी बेहोश के धड़ाम से ज़मीन पर गिरे और उनके प्राण पखेरू उड़ गए।

अब सारे गांव के लोगों ने उस बाहरी पंडित को अपना पुरोहित बना लिया और सुख से रहने लगे।